[ (مسألة 16): لا یحرم علی المحدث مسّ غیر الخطّ من ورق القرآن]
(مسألة 16): لا یحرم علی المحدث مسّ غیر الخطّ من ورق القرآن، حتّی ما
بین السطور و الجلد و الغلاف، نعم یکره ذلک، کما أنّه یکره تعلیقه و حمله.
[ (مسألة 17): ترجمة القرآن لیست منه بأیّ لغة کانت]
(مسألة 17): ترجمة القرآن لیست منه بأیّ لغة کانت، فلا بأس بمسّها علی المحدث، نعم لا فرق فی اسم اللّٰه تعالی بین اللغات.
[ (مسألة 18): لا یجوز وضع الشیء النجس علی القرآن]
(مسألة 18): لا یجوز وضع الشیء النجس [1] علی القرآن و إن کان یابساً؛
لأنّه هتک [2] و أمّا المتنجّس فالظاهر عدم البأس به [3] مع عدم الرطوبة،
فیجوز للمتوضّئ أن یمسّ القرآن بالید المتنجّسة، و إن کان الأولی ترکه.
[ (مسألة 19): إذا کتبت آیة من القرآن علی لقمة خبز لا یجوز للمحدث أکله]
(مسألة 19): إذا کتبت آیة من القرآن علی لقمة خبز لا یجوز للمحدث أکله
[4] و أمّا للمتطهّر فلا بأس خصوصاً إذا کان بنیّة الشفاء أو التبرّک.
[1] العبرة فی النجس و المتنجّس بعد فرض عدم السرایة بالهتک و عدمه. (الشیرازی). [2] فی إطلاقه إشکال، و المدار علی الهتک فی النجس و المتنجّس. (الإمام الخمینی). [3] الظاهر أنّه کالنجس مع الهتک، و مناط الحرمة فیهما ذلک. (الگلپایگانی). المدار فی الحرمة علی صدق الهتک، و قد یتحقّق ذلک فی بعض أفراد المتنجّس، بل فی بعض أفراد الطاهر أیضاً. (. الخوئی). [4] إذا استلزم المسّ. (الجواهری). إذا لزم المسّ، و إلّا جاز. (الحکیم). إذا کان أکله مستلزماً لمسّها قبل محوها. (البروجردی). إذا استلزم المسّ للکتابة. (الإمام الخمینی). إذا استوجب المسّ. (الشیرازی).